Reads times
PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
मन्त्र ४-२१ परमात्मा के गुणों का उपदेश।
Word-Meaning: - (इन्द्राय) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मा] के लिये (उद्यतम्) ऊँचे किये हुए (ब्रह्म) वेदज्ञान का (गर्गरः) गर्गर [सारंगी आदि बाजा] (अव स्वराति) स्वर आलापे, (गोधा) गोधा [वीणा आदि बाजा] (परि सनिष्वणत्) बोल बोले, और (पिङ्गा) पिङ्गा [धनुष की दृढ़ डोरी] (परि चनिष्कदत्) टङ्कार करे ॥६॥
Connotation: - मनुष्यों को योग्य है कि घर के बीच उत्सवों में और युद्धक्षेत्र के बीच संग्रामों में परमात्मा का स्मरण भली-भाँति करते रहें ॥६॥
Footnote: ६−(अव स्वराति) निश्चयेन शब्दयेत् (गर्गरः) अ० ४।१।१२। गॄ शब्दे-गप्रत्ययः+रा दाने-कप्रत्ययः। गर्गरस्य कलशस्य ध्वनियुक्तो वाद्यविशेषः (गोधा) अ० ४।३।६। गुध परिवेष्टने-घञ् टाप्। वीणादिवाद्यविशेषः (परि) सर्वतः (सनिष्वणत्) स्वन शब्दे, यङ्लुकि लेट्। भृशं ध्वनिं कुर्यात् (पिङ्गा) अ० ८।६।६। पिजि बले दीप्तौ च-अच्, कुत्वम्। दृढा धनुर्ज्या (परि) (चनिष्कदत्) स्कन्दिर् गतिशोषणयोः-यङ्लुकि लेट्। गतिं कुर्यात् टङ्कारयेत् (इन्द्राय) परमैश्वर्यवते परमात्मने (ब्रह्म) वेदज्ञानम् (उद्यतम्) ऊर्ध्वीकृतम् ॥