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इन्द्रा॑य॒ गाव॑ आ॒शिरं॑ दुदु॒ह्रे व॒ज्रिणे॒ मधु॑। यत्सी॑मुपह्व॒रे वि॒दत् ॥

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इन्द्राय । गाव: । आऽशिरम् । दुदुह्रे । वज्रिणे । मधु ॥ यत् । सीम् । उपऽह्वरे । विदत् ॥९२.३॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:92» Paryayah:0» Mantra:3


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

१-३ राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।

Word-Meaning: - (वज्रिणे) वज्रधारी (इन्द्राय) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले राजा] के लिये (गावः) वेदवाणियों ने (आशिरम्) सेवने वा पकाने योग्य पदार्थ [दूध, दही, घी आदि] को और (मधु) मधुविद्या [यथार्थ ज्ञान] को (दुदुह्रे) भर दिया है। (यत्) जबकि उसने [उन वेदवाणियों को] (उपह्वरे) अपने पास (सीम्) सब प्रकार (विदत्) पाया ॥३॥
Connotation: - ऐश्वर्यवान् पुरुष वेदवाणियों से सुशिक्षित होकर दूध आदि, भोग्य पदार्थ प्राप्त करके यथार्थ ज्ञान बढ़ावें ॥३॥
Footnote: १-३ व्याख्याताः-अ० २०।२२।४-६ ॥