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आ हर॑यः ससृज्रि॒रेऽरु॑षी॒रधि॑ ब॒र्हिषि॑। यत्रा॒भि सं॒नवा॑महे ॥

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आ । हरय: । ससृज्रिरे । अरुषी: । अधि । ‍बर्हिषि ॥ यत्र । अभि । सम्ऽनवामहे ॥९२.२॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:92» Paryayah:0» Mantra:2


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

१-३ राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।

Word-Meaning: - (हरयः) दुःख हरनेवाले मनुष्य (अरुषीः) गतिशील [प्रजाओं] को (बर्हिषि) बढ़ती के स्थान में (अधि) अधिकारपूर्वक (आ ससृज्रिरे) लाये हैं, (यत्र) जहाँ पर [तुझ राजा को] (अभि) सब ओर से (संनवामहे) हम मिलकर सराहते हैं ॥२॥
Connotation: - जिस राजा की सुनीति से विद्या द्वारा उन्नति होवे, प्रजासहित विद्वान् जन उसके गुणों का गान करें ॥२॥
Footnote: १-३ व्याख्याताः-अ० २०।२२।४-६ ॥