परमात्मा के गुणों का उपदेश।
Word-Meaning: - (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़े ब्रह्माण्डों के स्वामी परमेश्वर] ने (शयथा) सोती हुई (अपाचीम्) ओंधे मुखवाली (ईम्) प्राप्त हुई (पुरम्) पूर्ति [वा नगरी] को (विभिद्य) तोड़ डालकर (त्रीणि) तीनों [धामों अर्थात् स्थान, नाम और जाति जैसे मनुष्य पशु आदि-निरु० ६।२८] को (साकम्) एक साथ (उदधेः) जलवाले समुद्र से (निः अकृन्तत्) छाँट लिया, (द्यौः) उस प्रकाशमान [परमात्मा] ने (स्तनयन् इव) गरजते हुए बादल के समान होकर (उषसम्) तपानेवाले (सूर्यम्) सूर्य को, (गाम्) भूमि को और (अर्कम्) उष्णता देनेवाले अन्न को (विवेद) जताया है ॥॥
Connotation: - जो पदार्थ परमाणु रूप से प्रलय के बीच बीजरूप में गड़बड़ पड़े थे, उनको परमात्मा ने जल द्वारा आकारयुक्त करके सूर्य, पृथिवी, अन्न आदि उत्पन्न किये हैं ॥॥