परमात्मा के गुणों का उपदेश।
Word-Meaning: - (नः) हमारे (पिता) पिता [मनुष्य] ने (ऋतप्रजाताम्) सत्य [अविनाशी परमात्मा] से उत्पन्न हुई (सप्तशीर्ष्णीम्) [दो कान, दो नथने, दो आँखें, और एक मुख-अ० १०।२।६] सात गोलकों में शिर [आश्रय रखनेवाली,] (इमाम्) इस (बृहतीम्) बड़ी (धियम्) बुद्धि को (अविन्दत्) पाया है। और (विश्वजन्यः) उस सब मनुष्यों के हितकारी, (अयास्यः) शुभ कर्मों में स्थिति रखनेवाले मनुष्य ने (इन्द्राय) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले जगदीश्वर] की (स्वित्) ही (शंसन्) स्तुति करते हुए [तुरीयम्] बलयुक्त (उक्थम्) वचन को (जनयत्) प्रकट किया है ॥१॥
Connotation: - परमात्मा की जिस सत्य वेदवाणी को पूर्वज लोग परम्परा से परीक्षा करके ग्रहण करते आये हैं, विद्वान् लोग उसी वेदवाणी पर चलकर परमेश्वर की स्तुति करते हुए अपने आत्मा को बढ़ावें ॥१॥