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उ॒त प्र॒हामति॑दीवा जयति कृ॒तमि॑व श्व॒घ्नी वि चि॑नोति का॒ले। यो दे॒वका॑मो॒ न धनं॑ रु॒णद्धि॒ समित्तं रा॒यः सृ॑जति स्व॒धाभिः॑ ॥

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उत । प्रऽहाम् । अतिऽदीवा । जयति । कृतम्ऽइव । श्वघ्नी । वि । चिनोति । काले ॥ य: । देवऽकाम: । न । धनम् । रुणध्दि । सम् । इत् । तम् । राय: । सृजति । स्वधाभि: ॥८९.९॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:89» Paryayah:0» Mantra:9


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

Word-Meaning: - (उत) और (अतिदीवा) बड़ा व्यवहारकुशल पुरुष (प्रहाम्) उपद्रवी पुरुष को (जयति) जीत लेता है, (श्वघ्नी) धन नाश करनेवाला ज्वारी (काले) [हार के] समय पर (इव) ही (कृतम्) अपने काम का (वि चिनोति) विवेक करता है। (यः) जो (देवकामः) शुभ गुणों का चाहनेवाला (धनम्) धन को [शुभ काम में] (न) नहीं (रुणद्धि) रोकता है, (रायः) अनेक धन (तम्) उसको (इत्) ही (स्वधाभिः) आत्मधारण शक्तियों के साथ (सम् सृजति) मिलते हैं ॥९॥
Connotation: - प्रतापी पुरुष दुष्ट को जीतकर उसे उसके दोष का निश्चय करा देता है, शुभ गुण चाहनेवाला उदारचित्त मनुष्य अनेक धन और आत्मबल पाता है ॥•९॥
Footnote: मन्त्र ९, १० आ चुके हैं-अ० ७।०।६।७ •॥ ९−मन्त्रौ ९, १० व्याख्यातौ-अ० ७।०।६, ७ •॥