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बृह॑स्पते यु॒वमिन्द्र॑श्च॒ वस्वो॑ दि॒व्यस्ये॑शाथे उ॒त पा॑र्थिवस्य। ध॒त्तं र॒यिं स्तु॑व॒ते की॒रये॑ चिद्यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥

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Pad Path

बृहस्पते । युवम् । इन्द्र: । च । वस्व: । दिव्यस्य । ईशाथे इति । उत । पार्थिवस्य ॥ धत्तम् । रयिम् । स्तुवते । कीरये । चित् । यूयम् । पात । स्वस्तिऽभि: । सदा । न: ॥८७.७॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:87» Paryayah:0» Mantra:7


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

पुरुषार्थी के लक्षण का उपदेश।

Word-Meaning: - (बृहस्पते) हे बृहस्पति ! [बड़ी वेदवाणी के रक्षक विद्वान्] (च) और (इन्द्रः) हे इन्द्र ! [महाप्रतापी राजन्] (युवम्) तुम दोनों (दिव्यस्य) आकाश के (उत) और (पार्थिवस्य) पृथिवी के (वस्वः) धन के (ईशाथे) स्वामी हो (स्तुवते) स्तुति करते हुए (कीरये) विद्वान् को (रयिम्) धन (चित्) अवश्य (धत्तम्) तुम दोनों दो, [हे वीरो !] (यूयम्) तुम सब (स्वस्तिभिः) सुखों के साथ (सदा) सदा (नः) हमें (पात) रक्षित रक्खो ॥७॥
Connotation: - विद्वान् मन्त्री और पराक्रमी राजा और सब शूर पुरुष आकाशस्थ वायु वृष्टि आदि और पृथिवीस्थ अन्न सुवर्ण आदि का सुप्रबन्ध करके प्रजा की रक्षा करें ॥७॥
Footnote: यह मन्त्र आ चुका है-अ० २०।१७।१२ और चौथे पाद के लिये देखो-अ० २०।३७।११ ॥ ७-अयं मन्त्रो गतः-अ० २०।१७।१२ ॥