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आ त्वेता॒ नि षी॑द॒तेन्द्र॑म॒भि प्र गा॑यत। सखा॑यः॒ स्तोम॑वाहसः ॥

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Atharvaveda » Kand:20» Sukta:68» Paryayah:0» Mantra:11


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

Word-Meaning: - (स्तोमवाहसः) हे बड़ाई के प्राप्त करानेवाले (सखायः) मित्रो ! (तु) शीघ्र (आ इत) आओ, (आ) और (नि षीदत) बैठो, और (पुरूणाम्) पालन करनेवालों के (पुरुतमम्) अत्यन्त पालन करनेवाले, (वार्याणाम्) श्रेष्ठ पदार्थों वा धनों के (ईशानम्) स्वामी (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले], (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमेश्वर] को (सचा) सदा मेल के साथ (सोमे) सोम [तत्त्वरस] (सुते) सिद्ध होने पर (अभि) सब ओर से (प्र) अच्छे प्रकार (गायत) गावो ॥११, १२॥
Connotation: - विद्वान् लोग परस्पर उपकार के लिये धैर्य और प्रीति के साथ परमात्मा के गुणों के विचार से निश्चित सिद्धान्त करके ऐश्वर्य बढ़ावें ॥११, १२॥
Footnote: मन्त्र ११, १२ ऋग्वेद में है-१।।१, २ सामवेद-उ० १।२।१०। मन्त्र ११ साम०-पू० २।७।१० ॥ ११−(आ इत्) आगच्छत (तु) शीघ्रम् (आ) समुच्चये (नि षीदत) उपविशत (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं परमात्मानम् (अभि) सर्वतः (प्र) प्रकर्षेण (गायत) स्तुत (सखायः) हे सुहृदः (स्तोमवाहसः) अर्त्तिस्तुसुहु० उ० १।१४०। स्तौतेर्मन्। वहिहाधाञ्भ्यश्छन्दसि। उ० ४।२२१। वह प्रापणे-असुन् स च णित्। स्तुतिप्रापकाः ॥