Reads times
PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - (यः) जो [परमेश्वर] (रायः) धन का (अवनिः) रक्षक वा स्वामी (महान्) [बड़ा गुणी वा बली], (सुपारः) भले प्रकार पार लगानेवाला, (सुन्वतः) तत्त्वरस निकालनेवाले पुरुष का (सखा) मित्र है, [हे मनुष्यो !] (तस्मै) उस (इन्द्राय) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमेश्वर] के लिये (गायत) तुम गान करो ॥१०॥
Connotation: - मनुष्य जगदीश्वर परमात्मा की उपासना से तत्त्व का ग्रहण करके पुरुषार्थ से धर्म का सेवन करें ॥१०॥
Footnote: १०−(यः) परमेश्वरः (रायः) धनस्य (अवनिः) अ० २०।३।१०। रक्षकः। स्वामी (महान्) गुणेन बलेन वाधिकः (सुपारः) पार कर्मसमाप्तौ-पचाद्यच्। सुष्ठु पारयिता (सुन्वतः) तत्त्वरसं निष्पादयतः पुरुषस्य (सखा) प्रियः (तस्मै) (इन्द्राय) परमैश्वर्यवते जगदीश्वराय (गायत) गानं कुरुत ॥