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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
मन्त्र -१० परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
Word-Meaning: - [हे मनुष्यो !] (विप्राय) बुद्धिमान्, (बृहते) महान्, (धर्मकृते) धर्म [धारणयोग्य नियम] के बनानेवाले, (विपश्चिते) विशेष महाज्ञानी, (पनस्यवे) सबके लिये व्यवहार चाहनेवाले, (इन्द्राय) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले जगदीश्वर] के लिये (बृहत्) बड़े (साम) साम [दुःखनाशक मोक्षज्ञान] का (गायत) तुम गान करो ॥॥
Connotation: - मनुष्य वेदद्वारा धर्मविधान पर चलकर परमात्मा की उपासना से बुद्धिमान् और व्यवहारकुशल होकर मोक्षसुख प्राप्त करें ॥॥
Footnote: मन्त्र -७ ऋग्वेद में है-८।९८ [सायणभाष्य ८७]।१-३। सामवेद-उ० ३।२। तृच २२, मन्त्र , पू० ४।१०।८ ॥ −(इन्द्राय) परमैश्वर्यवते जगदीश्वराय (साम) अ० ७।४।१। दुःखनाशकं मोक्षज्ञानम् (गायत) पठत (विप्राय) मेधाविने (बृहते) महते (बृहत्) महत् (धर्मकृते) धर्मस्य धारणीयनियमस्य कर्त्रे (विपश्चिते) अ० ६।२।३। वि+प्र+चिती संज्ञाने-क्विप्। विशेषमहाज्ञानिने (पनस्यवे) पण स्तुतौ व्यवहारे च-असुन्-क्यच्-उ। सर्वेभ्यो व्यवहारमिच्छते ॥