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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
Word-Meaning: - (पुरुष्टुत) हे बहुत स्तुति किये हुए (इन्द्र) इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मन्] (सः) सो (एकः) अकेला तू (जैत्रा) जीतनेवालों के योग्य धनों (च) और (श्रवस्या) यश के लिये हितकारी कर्मों को (यन्तवे) नियम में रखने के लिये, (राजसि) राज्य करता है और (वृत्राणि) रोकनेवाले विघ्नों को (जिघ्नसे) मिटाता है ॥६॥
Connotation: - अकेला महाविद्वान् और महापुरुषार्थी परमात्मा सबको परस्पर धारण-आकर्षण से चलाता हुआ अपने विश्वासी भक्तों को उनके पुरषार्थ के अनुसार धन और कीर्ति देता है ॥, ६॥
Footnote: ६−(सः) तादृशस्त्वम् (राजसि) ईशिषे (पुरुष्टुत) बहुष्टुत (एकः) अद्वितीयः (वृत्राणि) आवरकान्। विघ्नान् (जिघ्नसे) हंसि। नाशयसि (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (जैत्रा) जेतृ-अण्। जेतॄणां योग्यानि धनानि (श्रवस्या) अ० २०।१२।१। यशसे हितानि कर्माणि (च) (यन्तवे) यन्तुं नियन्तु वशीकर्तुम् ॥