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तम्व॒भि प्र गा॑यत पुरुहू॒तं पु॑रुष्टु॒तम्। इन्द्रं॑ गी॒र्भिस्त॑वि॒षमा वि॑वासत ॥

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तम् । ऊं इति । अभ‍ि । प्र । गायत । पुरुऽहूतम् । पुरुस्तुतम् । इन्द्रम् । गीऽभि: । तविषम् । आ । विवासत ॥६१.४॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:61» Paryayah:0» Mantra:4


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

Word-Meaning: - [हे विद्वानो !] (तम् उ) उस ही (पुरुहूतम्) बहुत पुकारे हुए, (पुरुष्टुतम्) बहुत बड़ाई किये हुए, (तविषम्) महान् (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मा] को (अभि) सब ओर से (प्र) भले प्रकार (गायत) गाओ, और (गीर्भिः) वाणियों से (आ) सब प्रकार (विवासत) सत्कार करो ॥४॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! वह परमात्मा सबसे बड़ा है, उसीके गुणों को हृदय में धारण करके आत्मबल बढ़ाओ ॥४॥
Footnote: मन्त्र ४-६ ऋग्वेद में है-८।१।१-३ और आगे हैं-अ० २०।६०।८-१० और मन्त्र १ सामवेद में है-पू० ४।१०।३ ॥ ४−(तम्) प्रसिद्धम् (उ) एव (अभि) सर्वतः (प्र) प्रकर्षेण (गायत) स्तुत (पुरुहूतम्) बहुविधाहूतम् (पुरुष्टुतम्) बहुप्रशंसितम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं परमात्मानम् (गीर्भिः) वाणीभिः (तविषम्) महान्तम् (आ) समन्तात् (विवासत) परिचरत। सेवध्वम्-निघ० ३। ॥