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येन॒ ज्योतीं॑ष्या॒यवे॒ मन॑वे च वि॒वेदि॑थ। म॑न्दा॒नो अ॒स्य ब॒र्हिषो॒ वि रा॑जसि ॥

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येन । ज्योतींषि । आयवे । मनवे । च । विवेदिथ ॥ मन्दान: । अस्य । बर्हिष: । वि । राजसि ॥६१.२॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:61» Paryayah:0» Mantra:2


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

Word-Meaning: - [हे परमेश्वर !] (येन) जिस [यज्ञ] के द्वारा (आयवे) गतिशील [उद्योगी] (च) और (मनवे) मननशील मनुष्य के लिये (ज्योतींषि) ज्योतियों को (विवेदिथ) तूने प्राप्त कराया है, (मन्दानः) आनन्द करता हुआ तू (अस्य) उस (बर्हिषः) बढ़े हुए यज्ञ [संसार] का (वि) विशेष करके (राजसि) राजा है ॥२॥
Connotation: - जिस परमात्मा ने संसार के बीच, सूर्य, अग्नि, बिजुली, वायु आदि रचकर पुरुषार्थी विचारवान् पुरुष के लिये ऐश्वर्य पाने के अनन्त साधन दिये हैं, वही परमेश्वर सब सृष्टि का स्वामी है ॥२॥
Footnote: २−(येन) बर्हिषा। यज्ञेन (ज्योतींषि) सूर्याग्निविद्युद्वाय्वादीन् (आयवे) छन्दसीणः उ० १।२। इण् गतौ-उण्। गतिशीलाय (मनवे) मननशीलाय मनुष्याय (च) (विवेदिथ) विद्लृ लाभे-लिट्। प्रापितवानसि (मन्दानः) अ० २०।९।१। आमोदयिता (अस्य) प्रसिद्धस्य (बर्हिषः) प्रवृद्धस्य यज्ञस्य (वि) विशेषेण (राजसि) ईशिषे ॥