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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
Word-Meaning: - (अद्रिवः) हे मेघों के धारण करनेवाले ! [परमेश्वर] (ते) तेरे (तम्) उस (वृषणम्) महाबलवाले, (पृत्सु) सङ्ग्रामों में (ससहिम्) विजय करनेवाले, (लोककृत्नुम्) लोकों के बनानेवाले (उ) और (हरिश्रियम्) मनुष्यों में श्री [सेवनीय सम्पत्ति वा शोभा] देनेवाले (मदम्) आनन्द की (गृणीमसि) हम स्तुति करते हैं ॥१॥
Connotation: - पृथिवी आदि सब लोकों के रचनेवाले, मनुष्यों को सबमें श्रेष्ठ बनानेवाले न्यायकारी परमेश्वर की स्तुति से हम समर्थ होकर आनन्द बढ़ावें ॥१॥
Footnote: मन्त्र १-३ ऋग्वेद में है-८।।४-६, सामवेद-उ० २।२। तृच १८ मन्त्र १- पू० ४।१०।३ ॥ १−(तम्) प्रसिद्धम् (ते) तव (मदम्) आनन्दम् (गृणीमसि) मस इकारागमः। स्तुमः (वृषणम्) महाबलवन्तम् (पृत्सु) संग्रामेषु (ससहिम्) अ० ३।१८।। अभिभवितारम्। विजयितारम् (उ) च (लोककृत्नुम्) कृहनिभ्यां क्त्नुः। उ० ३।३०। करोतेः क्त्नु। लोकानां कर्तारम् (अद्रिवः) हे मेघधारिन् (हरिश्रियम्) हरिषु मनुष्येषु श्रीः श्रयणीया सेव्या सम्पत्तिः शोभा वा यस्मात् तम् ॥