Reads times
PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - [हे पुरुष !] तू (एव) निश्चय करके (हि) ही (वीरयुः) वीरों का चाहनेवाला, (एव) निश्चय करके (शूरः) शूर (उत) और (स्थिरः) दृढ़ (असि) है, (एव) निश्चय करके (ते) तेरा (मनः) मन [विचारसामर्थ्य] (राध्यम्) बड़ाई योग्य है ॥१॥
Connotation: - मनुष्य धार्मिक सत्य सङ्कल्पों की पूर्ति के लिये सदा दृढ़ प्रयत्न करे ॥१॥
Footnote: मन्त्र १-३ ऋग्वेद में हैं-८।९२ [सायणभाष्य ८१]।२८-३०। सामवेद-उ० २।१। तृच १८ मन्त्र १-पू० ३।४।१० ॥ १−(एव) निश्चयेन (हि) अवधारणे (असि) (वीरयुः) वीर-क्यच्। उप्रत्ययः वीरान् कामयमानः (एव) (शूरः) (उत) अपि (स्थिरः) दृढः (एव) (ते) तव (राध्यम्) आराधनीयम् (मनः) मननसामर्थ्यम् ॥