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उदु॒ त्ये मधु॑ मत्त॒मा गिर॒ स्तोमा॑स ईरते। स॑त्रा॒जितो॑ धन॒सा अक्षि॑तोतयो वाज॒यन्तो॒ रथा॑ इव ॥

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उत् । ऊं इति । त्ये । मधुमत्ऽतमा: । गिर: । स्तोमास: । ईरते ॥ सत्राऽजित: । धनसा: । अक्षितऽऊतय: । वाजऽयन्त: । रथा:ऽइव ॥५९.१॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:59» Paryayah:0» Mantra:1


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

१-२ ईश्वर की उपासना का उपदेश।

Word-Meaning: - (त्ये) वे (मधुमत्तमाः) अतिमधुर (स्तोमासः) स्तोत्र (उ) और (गिरः) वाणियाँ (उत् ईरते) ऊँची जाती हैं। (इव) जैसे (सत्राजितः) सत्य से जीतनेवाले, (धनसाः) धन देनेवाले, (अक्षितोतयः) अक्षय रक्षा करनेवाले, (वाजयन्तः) बल प्रकट करते हुए (रथाः) रथ [आगे बढ़ते हैं] ॥१॥
Connotation: - जैसे शूरवीरों के रथ रणक्षेत्र में विजय पाने के लिये उमंग से चलते हैं, वैसे ही मनुष्य दोषों और दुष्टों को वश में करने के लिये परमात्मा की स्तुति को किया करें ॥१॥
Footnote: मन्त्र १, २ आचुके हैं-अ० २०।१०।१-२ ॥ १-२−मन्त्रौ व्याख्यातौ अ० २०।१०।१-२ ॥