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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
ईश्वर विषय का उपदेश।
Word-Meaning: - (सूर्य) हे चराचर के प्रेरक [परमेश्वर] तू (बट्) सत्य-सत्य (महान्) बड़ा (असि) है, (आदित्य) हे अविनाशी ! तू (बट्) ठीक-ठीक (महान्) महान् [पूजनीय] (असि) है। (ते) तुझ (महः) महान्, (सतः) सत्यस्वरूप की (महिमा) महिमा (पनस्यते) स्तुति की जाती है, (देव) हे दिव्य गुणवाले ! तू (अद्धा) निश्चय करके (महान्) महान् (असि) है ॥३॥
Connotation: - जिस परमात्मा की महिमा सब सृष्टि के पदार्थ जताते हैं, सब मनुष्य उसकी उपासना करके अपनी उन्नति करें ॥३॥
Footnote: मन्त्र ३ कुछ भेद से आचुका है-अ० १३।२।२९। मन्त्र ३, ४ ऋग्वेद में हैं-८।१०१ [सायणभाष्य ९०]।११, १२ यजुर्वेद ३३।३९, ४०। और सामवेद-उ० ९।१।९ ॥ ३−(बट्) सत्यम् (महान्) विशालः (असि) (सूर्य) हे चराचर-प्रेरक (बट्) (आदित्य) हे अविनाशिस्वरूप (महान्) पूजनीयः (असि) (महः) महतः (ते) तव (सतः) सत्यस्वरूपस्य (पनस्यते) स्तूयते (अद्धा) सत्यम् (देव) हे दिव्यगुणविशिष्ट (महान्) (असि) ॥