Reads times
PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
१-१० मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - [हे राजन् !] (अथ) और (ते) तेरी (अन्तमानाम्) अत्यन्त समीप रहनेवाली (सुमतीनाम्) सुन्दर बुद्धियों का (विद्याम) हम ज्ञान करें। तू (नः) हमें (अति) छोड़कर (मा ख्यः) मत बोल, (आ गहि) तू आ ॥३॥
Connotation: - जब राजा पूर्ण प्रीति से प्रजापालन करता है, प्रजागण उसकी धार्मिक नीतियों से लाभ उठाकर उससे प्रीति करते हैं ॥३॥
Footnote: ३−(अथ) अनन्तरम् (ते) तव (अन्तमानाम्) अन्तः सामीप्यम्। अत इनिठनौ। पा० ।२।११। इति अन्त-ठन् प्रत्ययः। ततोऽतिशायिने तमप्। पृषोदरादित्वात् तिक्शब्दस्य लोपः। अन्तमानाम्, अन्तिकनाम-निघ० २।१६। अन्तिकतमानाम्। अतिशयेन समीपस्थानाम् (विद्याम) वेत्तेर्लङ्। ज्ञानं कुर्याम, (मा) निषेधे (नः) अस्मान् (अति) अतीत्य। उल्लङ्घ्य। (ख्यः) ख्या प्रकथने लुङ्। माङ्योगेऽडभावः। प्रकथय (आ गहि) आगच्छ ॥