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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
१-१० मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - (सोमपाः) हे ऐश्वर्य के रक्षक ! [राजन्] (नः) हमारे लिये (सवना) ऐश्वर्ययुक्त पदार्थों को (उप) समीप से (आ गहि) तू प्राप्त हो और (सोमस्य) सोम [तत्त्व रस] का (पिब) पान कर, (रेवतः) धनवान् पुरुष का (मदः) हर्ष (इत्) ही (गोदाः) दृष्टि का देनेवाला है ॥२॥
Connotation: - राजा ऐश्वर्यवान् और दूरदर्शी होकर प्रसन्नतापूर्वक प्रजा को ज्ञानवान् बनावे ॥२॥
Footnote: २−(उप) समीपे (नः) अस्मभ्यम् (सवना) ऐश्वर्ययुक्तानि वस्तूनि (आ) समन्तात् (गहि) गच्छ। प्राप्नुहि (सोमस्य) तत्त्वरसस्य (सोमपाः) हे ऐश्वर्यरक्षक (पिब) पानं कुरु (गोदाः) क्विप् च। पा० ३।२।७६। गो+ददातेः-क्विप्। गोर्दृष्टेर्दाता (इत्) एव (रेवतः) धनवतः पुरुषस्य (मदः) हर्षः ॥