Go To Mantra

कण्वे॑भिर्धृष्ण॒वा धृ॒षद्वाजं॑ दर्षि सह॒स्रिण॑म्। पि॒शङ्ग॑रूपं मघवन्विचर्षणे म॒क्षू गोम॑न्तमीमहे ॥

Mantra Audio
Pad Path

कण्वेभि: । धृष्णो इति । आ । धृषत् । वाजम् । दर्षि । सहस्रिणम् ॥ पिशङ्गऽरूपम् । मघऽवन् । विऽचर्षणे । मक्षू । गोमन्तम् । ईमहे ॥५७.१६॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:57» Paryayah:0» Mantra:16


Reads times

PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

मन्त्र १४-१६ परमात्मा की उपासना का उपदेश।

Word-Meaning: - (धृष्णो) हे निर्भय ! [परमात्मन्] (धृषत्) दृढ़ता से (कण्वेभिः) बुद्धिमानों करके [किये हुए] (सहस्रिणम्) सहस्रों आनन्दवाले (वाजम्) वेग का (आ दर्षि) तू आदर करता है, (मघवन्) हे धनवाले ! (विचर्षणे) हे दूरदर्शी ! (पिशङ्गरूपम्) अवयवों को रूप देनेवाले, (गोमन्तम्) वेदवाणीवाले [तुझ] से (मक्षु) शीघ्र (ईमहे) हम प्रार्थना करते हैं ॥१६॥
Connotation: - वह परमात्मा परमाणुओं से सूर्य आदि बड़े-बड़े लोकों का बनानेवाला है, उस निर्भय की उपासना से मनुष्य धर्मात्मा होकर निर्भय होवें ॥१६॥
Footnote: १४-१६। एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।३।१-३ ॥