मदे॑मदे॒ हि नो॑ द॒दिर्यू॒था गवा॑मृजु॒क्रतुः॑। सं गृ॑भाय पु॒रु श॒तोभ॑याह॒स्त्या वसु॑ शिशी॒हि रा॒य आ भ॑र ॥
Pad Path
मदेऽमदे । हि । न: । ददि: । यूथा । गवाम् । ऋजुऽक्रतु: ॥ सम् । गृभाय । पुरु । शता । उभयाहस्त्या । वसु । शिशीहि । राय: । आ । भर ॥५६.४॥
Atharvaveda » Kand:20» Sukta:56» Paryayah:0» Mantra:4
Reads times
PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
सभापति के लक्षण का उपदेश।
Word-Meaning: - (ऋजुक्रतुः) सच्ची बुद्धि वा कर्मवाला तू (मदेमदे) आनन्द-आनन्द पर (हि) निश्चय करके (नः) हमको (गवाम्) गो आदि पशुओं के (यूथा) समूहों का (ददिः) देनेवाला है, (उभयाहस्त्या) दोनों हाथों से (पुरु) बहुत (शता) सैकड़ों (वसु) धनों को (सं गृभाय) संग्रह कर, (शिशीहि) तीक्ष्ण हो और (रायः) धनों को (आ) सब ओर से (भर) भर ॥४॥
Connotation: - बुद्धिमान् राजा आनन्द के प्रत्येक अवसर पर योग्य पुरुषों का सत्कार करे और उचित व्यय करने के लिये सदा धन का संग्रह करता रहे ॥४॥
Footnote: ४−(मदेमदे) प्रत्येकहर्षावसरे (हि) निश्चयेन (नः) अस्मभ्यम् (ददिः) डुदाञ् दाने-किप्रत्ययः। दाता (यूथा) यूथानि। समूहान् (गवाम्) गवादिपशूनाम् (ऋजुक्रतुः) सरलबुद्धिः। सत्यकर्मा (संगृभाय) सम्यग् गृहाण (पुरु) बहूनि (शता) शतानि (उभयाहस्त्या) विभक्तेर्ड्याजादेशः, छान्दसो दीर्घः। उभाभ्यां हस्ताभ्याम् (वसु) वसूनि। धनानि (शिशीहि) शो तनूकरणे, विकरणस्य श्लुः, अभ्यासस्य इत्वम्। ई हल्यघोः। पा० ६।४।११३। इति धातोरीत्वम्। श्य। तीक्ष्णीभव। उद्यतो भव (रायः) धनानि (आ) समन्तात् (भर) धेहि ॥