Go To Mantra

असि॒ हि वी॑र॒ सेन्यो॑ऽसि॒ भूरि॑ पराद॒दिः। असि॑ द॒भ्रस्य॑ चिद्वृ॒धो य॑जमानाय शिक्षसि सुन्व॒ते भूरि॑ ते॒ वसु॑ ॥

Mantra Audio
Pad Path

असि । हि । वीर: । सेन्य: । असि । भूरि । पराऽददि: ॥ असि । दभ्रस्य । चित् । वृध: । यजमानाय । शिक्षसि । सुन्वते । भूरि । ते । वसु ॥५६.२॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:56» Paryayah:0» Mantra:2


Reads times

PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

सभापति के लक्षण का उपदेश।

Word-Meaning: - (वीर) हे वीर तू (हि) ही (सेन्यः) सेनाओं का हितकारी (असि) है, (भूरि) बहुत प्रकार से (पराददिः) शत्रुओं का पकड़नेवाला (असि) है। तू (दभ्रस्य) छोटे पुरुष का (चित्) अवश्य (वृधः) बढ़ानेवाला (असि) है, तू (सुन्वते) तत्त्व निचोड़नेवाले (यजमानाय) यजमान को (ते) अपना (भूरि) बहुत (वसु) धन (शिक्षसि) देता है ॥२॥
Connotation: - वीर सेना हितकारी योग्य छोटे अधिकारियों को बढ़ाकर श्रेष्ठों का मान करे ॥२॥
Footnote: २−(असि) (हि) (वीर) (सेन्यः) सेनाभ्यो हितः (असि) (भूरि) बहु (पराददिः) पर+आङ्+डु दाञ् दाने-किप्रत्ययः। पराञ्च्छत्रूनादाता ग्रहीता (असि) (दभ्रस्य) अल्पस्य पुरुषस्य (चित्) एव (वृधः) वृधेरन्तर्गतण्यन्तात् कप्रत्ययः”। वर्धयिता (यजमानाय) श्रेष्ठकर्मकारकाय (शिक्षसि) ददासि-निघ० ३।२०। (सुन्वते) तत्त्वं संस्कुर्वते (भूरि) बहु (ते) त्वदीयम्। स्वकीयम् (वसु) धनम् ॥