परमेश्वर की उपासना का उपदेश।
Word-Meaning: - (अस्य) इस (इन्द्रस्य) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मा] की (महीः) पूजनीय (समिषः) यथावत् इच्छाएँ (शतानीकाः) सैकड़ों सेनादलों में वर्तमान (हेतयः) बाणों के समान (दुष्टराः) दुस्तर [अजेय] हैं। (गिरिः न) मेघ के समान, वह [परमात्मा] (भुज्मा) भोग्य पदार्थों को (मघवत्सु) गतिवालों पर (पिन्वते) सींचता है, (यत्) जबकि (सुताः) पुत्र [के समान उपासक] (ईम्) प्राप्तियोग्य [परमेश्वर] को (अमन्दिषुः) प्रसन्न कर चुकें ॥४॥
Connotation: - परमात्मा की अनन्त शक्तियाँ दुष्टों वा दोषों को इस प्रकार नाश करती हैं, जैसे बड़े सेनापति के हथियार और जो उद्योगी उपासक उसकी आज्ञा मानते हैं, उनको वह मेह के समान अवश्य अत्यन्त सुख देता है ॥४॥