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येना॑ समु॒द्रमसृ॑जो म॒हीर॒पस्तदि॑न्द्र॒ वृष्णि॑ ते॒ शवः॑। स॒द्यः सो अ॑स्य महि॒मा न सं॒नशे॒ यं क्षो॒णीर॑नुचक्र॒दे ॥

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येन । समुद्रम् । असृज: । मही: । अप: । तत् । इन्द्र । वृष्णि । ते । शव: ॥ सद्य: । स: । अस्य । महिमा । न । सम्ऽनशे । यम् । क्षोणी: । अनुऽचक्रदे ॥४९.७॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:49» Paryayah:0» Mantra:7


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

ईश्वर की उपासना का उपदेश।

Word-Meaning: - (येन) जिस [बल] से (समुद्रम्) समुद्र में (महीः) शक्तिवाले (अपः) जलों को (असृजः) तूने उत्पन्न किया है, (इन्द्र) हे इन्द्र ! [परम ऐश्वर्यवान् जगदीश्वर] (तत्) वह (ते) तेरा (वृष्णि) पराक्रमयुक्त (शवः) बल है। (सद्यः) अभी (अस्य) इस [परमात्मा] की (सः) वह (महिमा) महिमा [हमसे] (न) नहीं (संनशे) पाने योग्य है, (यम्) जिस [परमात्मा] को (क्षोणीः) लोकों ने (अनुचक्रदे) निरन्तर पुकारा है ॥७॥
Connotation: - जिस परमात्मा ने मेघमण्डल में और पृथिवी पर जलादि पदार्थ और सब लोकों को उत्पन्न करके अपने वश में रक्खा है, उसकी महिमा की सीमा को सृष्टि में कोई भी नहीं पा सकता ॥७॥
Footnote: ४-७−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।९।१-४ ॥