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तत्त्वा॑ यामि सु॒वीर्यं॒ तद्ब्रह्म॑ पू॒र्वचि॑त्तये। येना॒ यति॑भ्यो॒ भृग॑वे॒ धने॑ हि॒ते येन॒ प्रस्क॑ण्व॒मावि॑थ ॥

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Pad Path

तत् । त्वा । यामि । सुऽवीर्यम् । तत् । ब्रह्म । पूर्वऽचित्तये ॥ येन । यतिऽभ्य: । भृगवे । धने । हिते । येन । प्रस्कण्वम् । आविथ ॥४९.६॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:49» Paryayah:0» Mantra:6


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

ईश्वर की उपासना का उपदेश।

Word-Meaning: - [हे परमात्मन् !] (त्वा) तुझसे (तत्) वह (सुवीर्यम्) बड़ा वीरत्व और (तत्) वह (ब्रह्म) बढ़ता हुआ अन्न (पूर्वचित्तये) पहिले ज्ञान के लिये (यामि) मैं माँगता हूँ। (येन) जिस [वीरत्व और अन्न] से (धने हिते) धन के स्थापित होने पर (यतिभ्यः) यतियों [यत्नशीलों] के लिये (भृगवे=भृगुम्) परिपक्व ज्ञानी को और (येन) जिससे (प्रस्कण्वम्) बड़े बुद्धिमान् पुरुष को (आविथ) तूने बचाया है ॥६॥
Connotation: - मनुष्यों को परमात्मा की उपासना करके पुरुषार्थ के साथ पराक्रमी, अन्नवान् और धनी होना चाहिये, जिसके अनुकरण से प्रयत्नशील पुरुष सुरक्षित रहें ॥६॥
Footnote: ४-७−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।९।१-४ ॥