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आयं गौः पृश्नि॑रक्रमी॒दस॑दन्मा॒तरं॑ पु॒रः। पि॒तरं॑ च प्र॒यन्त्स्व: ॥

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आ । अयम् । गौ: । पृश्नि: । अक्रमीत् । असदत् । मातरम् । पुर: ॥ पितरम् । च । प्रऽयन् । स्व: ॥४८.४॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:48» Paryayah:0» Mantra:4


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

सूर्य वा भूमि के गुणों का उपदेश।

Word-Meaning: - (अयम्) यह (गौः) चलने वा चलानेवाला, (पृश्निः) रसों वा प्रकाश का छूनेवाला सूर्य (आ अक्रमीत्) घूमता हुआ है, (च) और (पितरम्) पालन करनेवाले (स्वः) आकाश में (प्रयन्) चलता हुआ (पुरः) सन्मुख होकर (मातरम्) सबकी बनानेवाली पृथिवी माता को (असदत्) व्यापा है ॥४॥
Connotation: - यह सूर्य अन्तरिक्ष में घूमकर आकर्षण, वृष्टि आदि व्यापारों से पृथिवी आदि लोकों का उपकार करता है ॥४॥
Footnote: मन्त्र ४-६ आचुके हैं-अ० ६।३१।१-३, वहाँ सविस्तार अर्थ देखो। ४-६−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० ६।३१।१-३ ॥