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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
१-३ परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।
Word-Meaning: - (शुभ्रियः) शुद्ध (प्रियः) प्रीति करती हुई (ताः) वे [वाणियाँ-मन्त्र १] (वर्चसा) प्रकाश के साथ (पृञ्चन्तीः) छूती हुई [तुझको-मन्त्र १] (अर्षन्ति) ग्रहण करती हैं। (यथा) जैसे (जात्रीः) माताएँ (जातम्) जने हुए बच्चों को (हृदा) हृदय से [ग्रहण करती हैं] ॥२॥
Connotation: - मनुष्यों को एकाग्रचित्त होकर परमात्मा की उपासना ऐसी रीति से करनी चाहिये, जैसे माता तुरन्त जन्मे बालक से प्रीति करती है ॥२॥
Footnote: २−(ताः) गिरः-म० १ (अर्षन्ति) ऋषी गतौ। प्राप्नुवन्ति। गृह्णन्ति (शुभ्रियः) अदिशदिभृशुभिभ्यः क्रिन्। उ० ४।६। शुभ शोभायाम्-क्रिन्, ङीप्। शुद्धाः (पृञ्चन्तीः) सम्पर्कं कुर्वन्त्यः (वर्चसा) तेजसा (प्रियः) प्रीञ् तर्पणे कान्तौ च-क्विप्। तर्पयित्र्यः (जातम्) उत्पन्नं सन्तानम् (जात्रीः) सर्वधातुभ्यः ष्ट्रन्। उ० ४।१९। जन जनने-ष्ट्रन्, ङीष्। जनयित्र्यः। जनन्यः (यथा) (हृदा) हृदयेन ॥