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आ त्वा॑ ब्रह्म॒युजा॒ हरी॒ वह॑तामिन्द्र के॒शिना॑। उप॒ ब्रह्मा॑णि नः शृणु ॥

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आ । त्वा । ब्रह्मऽयुजा । हरी इति । वहताम् । इन्द्र । केशिना ॥ उप0951ग । ब्रह्माणि । न: । शृणु ॥४७.८॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:47» Paryayah:0» Mantra:8


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (ब्रह्मयुजा) धन के लिये जोड़े गये, (केशिना) सुन्दर केशों [कन्धे आदि के बालों] वाले (हरी) रथ ले चलनेवाले दो घोड़ों [के समान बल और पराक्रम] (त्वा) तुझको (आ) सब ओर (वहताम्) ले चलें। (नः) हमारे (ब्रह्माणि) वेदज्ञानों को (उप) आदर से (शृणु) तू सुन ॥८॥
Connotation: - जैसे उत्तम बलवान् घोड़े रथ को ठिकाने पर पहुँचाते हैं, वैसे ही राजा वेदोक्त मार्ग पर चलकर अपने बल और पराक्रम से राज्यभार उठाकर प्रजापालन करे ॥८॥