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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
सेनापति के लक्षण का उपदेश।
Word-Meaning: - (वस्यः) श्रेष्ठ धन की ओर (प्रणेतारम्) ले चलनेवाले (समत्सु) संग्रामों में (ज्योतिः) प्रकाश (कर्तारम्) करनेवाले (युधा) युद्ध से (अमित्रान्) पीड़ा देनेवाले वैरियों को (सासह्वांसम्) हरानेवाले [सेनापति] को (अच्छ) पाकर [हम बर्तें] ॥१॥
Connotation: - जो मनुष्य प्रजा को धन प्राप्त करावे और संग्रामों में वैरियों को जीते, वह सेनापति होवे ॥१॥
Footnote: यह तृच ऋग्वेद में है-८।१६।१०-१२ ॥ १−(प्रणेतारम्) प्रापयितारम् (वस्यः) अ० २०।१४।३। प्रशस्यं धनम् (अच्छ) अच्छाभेराप्तुमिति शाकपूणिः-निरु० ।२८। प्राप्य (कर्तारम्) कारकम् (ज्योतिः) प्रकाशम् (समत्सु) सङ्ग्रामेषु (सासह्वांसम्) षह अभिभवे-क्वसु, अभ्यासस्य दीर्घश्छान्दसः। अभिभवितारम् (युधा) युद्धेन (अमित्रान्) पीडकान्। शत्रून् ॥