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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
सभापति के कर्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - [हे सेनापति !] (अयम्) यह [प्रजाजन] (ते उ) तेरा ही है, तू [उस प्रजा जन से] (सम् अतसि) सदा मिलता रहता है, (इव) जैसे (कपोतः) कबूतर (गर्भधिम्) गर्भ रखनेवाली कबूतरी से [पालने को मिलता है], (तत्) इसलिये तू (चित्) ही (नः) हमारे (वचः) वचन को (ओहसे) सब प्रकार विचारता है ॥१॥
Connotation: - जब कबूतरी अण्डे सेवती और बच्चे देती है, कबूतर बड़े प्रेम से उसको चारा लाकर खिलाता है, इसी प्रकार राजा सुनीति से प्रजा का पालन करे और उनकी पुकार सुने ॥१॥
Footnote: यह तृच ऋग्वेद में है-१।३०।४-६ सामवेद-उ० ७।३। तृच १, तथा मन्त्र १-साम० पू० २।९।९ ॥ १−(अयम्) प्रजाजनः (उ) एव (ते) तव (सम्) (अतसि) सततं संगच्छसे (कपोतः) पारावतः (इव) यथा (गर्भधिम्) गर्भ+दधातेः-कि प्रत्ययः। गर्भधारिणीं कपोतीम् (वचः) वचनम् (तत्) तस्मात् कारणात् (चित्) एव (नः) अस्माकम् (ओहसे) आ+ऊह वितर्के। समन्ताद् विचारयसि ॥