Go To Mantra

प्र स॒म्राजं॑ चर्षणी॒नामिन्द्रं॑ स्तोता॒ नव्यं॑ गीर्भिः। नरं॑ नृ॒षाहं॒ मंहि॑ष्ठम् ॥

Mantra Audio
Pad Path

प्र । सम्ऽराजम् । चर्षणीनाम् । इन्द्रम् । स्तोत । नव्यम् । गीऽभि: ॥ नरम् । नऽसहम् । मंहिष्ठम् ॥४४.१॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:44» Paryayah:0» Mantra:1


Reads times

PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

Word-Meaning: - [हे विद्वानो !] (चर्षणीनाम्) मनुष्यों के (सम्राजम्) सम्राट् [राजाधिराज], (नव्यम्) स्तुतियोग्य, (नरम्) नेता, (नृषाहम्) नेताओं को वश में रखनेवाले, (मंहिष्ठम्) अत्यन्त दानी (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले राजा] को (गीर्भिः) वाणियों से (प्र) अच्छे प्रकार (स्तोत) सराहो ॥१॥
Connotation: - विद्वान् प्रजागण अभिनन्दन आदि से उदारचित्त राजा के बड़े-बड़े उपकारी कामों की प्रशंसा करके सत्कार करें ॥१॥
Footnote: यह तृच ऋग्वेद में है-८।१६।१-३। मन्त्र १ सामवेद-पू० २।।१० ॥ १−(प्र) प्रकर्षेण (सम्राजम्) राजराजेश्वरम् (चर्षणीनाम्) मनुष्याणाम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं राजानम् (स्तोत) स्तुत (नव्यम्) स्तुत्यम् (गीर्भिः) वाणीभिः (नरम्) नेतारम् (नृषाहम्) नेतॄणामभिभवितारं वशयितारम् (मंहिष्ठम्) अ० २०।१।१। उदारतमम् ॥