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अ॑नव॒द्यैर॒भिद्यु॑भिर्म॒खः सह॑स्वदर्चति। ग॒णैरिन्द्र॑स्य॒ काम्यैः॑ ॥

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अनवद्यै: । अभिद्युऽभि: । मख: । सहस्वत् । अर्चति ॥ गणै: । इन्द्रस्य । काम्यै: ॥४०.२॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:40» Paryayah:0» Mantra:2


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।

Word-Meaning: - (अनवद्यैः) निर्दोष, (अभिद्युभिः) सब ओर से प्रकाशमान और (काम्यैः) प्रीति के योग्य (गणैः) गणों [प्रजागणों] के साथ (इन्द्रस्य) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले राजा] का (मखः) यज्ञ [राज्य व्यवहार] (सहस्वत्) अतिदृढ़ता से (अर्चति) सत्कार पाता है ॥२॥
Connotation: - सब राज-काज उत्तम विद्वान् लोगों के मेल से अच्छे प्रकार सिद्ध होते हैं ॥२॥
Footnote: २−(अनवद्यैः) निर्दोषैः (अभिद्युभिः) अभितः प्रकाशमानैः (मखः) मख गतौ-घप्रत्ययः। यज्ञः-निघ०३।१७। राज्यव्यवहारः (सहस्वत्) यथा स्यात्तथा। बलवत्त्वेन। अतिदृढत्वेन (अर्चति) अर्च्यते। सत्क्रियते (गणैः) प्रजाजनैः (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यवतो राज्ञः (काम्यैः) कमेर्णिङ्। पा०३।१।३०। कमु कान्तौ-णिङ्। अचो यत्। पा०३।१।९७। कामि-यत्। कामयितव्यैः। प्रीतियोग्यैः ॥