सभापति के लक्षणों का उपदेश।
Word-Meaning: - (अस्य) इस [सभापति] के (इत्) ही (उ) निश्चय करके (त्वेषसा) तेज [पराक्रम] से (सिन्धवः) नदियाँ [नाले बरहा आदि] (रन्त) रमे हैं [बहे हैं], (यत्) क्योंकि उसने (वज्रेण) वज्र [बिजुली फडुआ आदि शस्त्रों] से (सीम्) बन्ध [बाँध आदि] को (परि) सब ओर से (यच्छत्) बाँधा है। (दाशुषे) दानी मनुष्य को (ईशानकृत्) ऐश्वर्यवान् करनेवाले, (दशस्यन्) कवच [रक्षासाधन] के समान काम करते हुए, (तुर्वणिः) शीघ्रता सेवन करनेवाले [सभाध्यक्ष] ने (तुर्वीतये) शीघ्रता करनेवालों के चलने के लिये (गाधम्) उथले स्थान [घाट आदि] को (कः) बनाया है ॥११॥
Connotation: - प्रधान राजा को चाहिये कि पहाड़ों से बड़े-बड़े नाले काटकर पृथिवी पर जल लाकर खेती आदि करावे, और यात्रियों के लिये सेतु [पुल] घाट आदि बनावे ॥११॥