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अ॒ग्निराग्नी॑ध्रात्सु॒ष्टुभः॑ स्व॒र्कादृ॒तुना॒ सोमं॑ पिबतु ॥

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अग्नि: । आग्नीध्रात् । सुऽस्तुभ: । सुऽअर्कात् । ऋतुना । सोमम् । पिबतु ॥२.२॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:2» Paryayah:0» Mantra:2


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

विद्वानों के व्यवहार का उपदेश।

Word-Meaning: - (अग्निः) अग्नि [समान तेजस्वी पुरुष] (सुष्टुभः) बड़े स्तुतियोग्य, (स्वर्कात्) बड़े पूजनीय (आग्नीध्रात्) अग्नि की प्रकाशविद्या को आश्रय में रखनेवाले व्यवहार से (ऋतुना) ऋतु के साथ (सोमम्) उत्तम ओषधियों के रस को (पिबतु) पीवे ॥२॥
Connotation: - मनुष्य उत्तम अग्नि विद्या के उपयोग से सदा सुखसामग्री बढ़ावें ॥–२॥
Footnote: २−(अग्निः) अग्निवत्तेजस्वी पुरुषः (आग्नीध्रात्) अग्नि+इन्धी दीप्तौ-क्विप्, नलोपः। अग्नीधः शरणे रञ् भ च। वा० पा० ४।३।१२०। अग्नीध्-रञ्, भत्वान्न जश्। अग्नीत् अग्निदीपनं यस्य शरण आश्रये तस्मात्। अग्निप्रकाशविद्याशरणयुक्तव्यवहारात्। शिष्टं पूर्ववत् ॥