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म॒रुतः॑ पो॒त्रात्सु॒ष्टुभः॑ स्व॒र्कादृ॒तुना॒ सोमं॑ पिबतु ॥

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मरुत: । पोत्रात् । सुऽस्तभ: । सुऽअर्कात् । ऋतुना । सोमम् । पिबतु ॥२.१॥

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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

विद्वानों के व्यवहार का उपदेश।

Word-Meaning: - (मरुतः) शूर विद्वान् लोग (सुष्टुभः) बड़े स्तुतियोग्य, (स्वर्कात्) बड़े पूजनीय (पोत्रात्) पवित्र व्यवहार से (ऋतुना) ऋतु के अनुसार (सोमम्) उत्तम ओषधियों के रस को (पिबतु) पीवें ॥१॥
Connotation: - मनुष्य उत्तम व्यवहारों से उत्तम ओषधि आदि का सेवन करके सदा सुख बढ़ावें ॥१॥
Footnote: यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है-१।१।२ ॥ १−(मरुतः) शूरविद्वांसः (पोत्रात्) सर्वधातुभ्यः ष्ट्रन्। उ० ४।१९। पूञ् शोधने-ष्ट्रन्। पवित्रव्यवहारात् (सुष्टुभः) स्तोभतिरर्चतिकर्मा-निघ० ३।१४, क्विप्। बहुस्तुतियोग्यात् (स्वर्कात्) बहुपूजनीयात् (ऋतुना) ऋतुना सह। ऋतुमनुसृत्येत्यर्थः (सोमम्) सदोषधिरसम् (पिबतु) बहुवचनस्यैकवचनम्। पिबन्तु ॥