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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
दिन और राति के उत्तम प्रयोग का उपदेश।
Word-Meaning: - (यत्) जब (आपीतासः) अच्छे प्रकार पीये हुए (अंशवः) बटे हुए सोम रस [तत्त्व रस] (दुह्रे) दुहे जाते हैं, (गावः न) जैसे गौएँ (ऊधभिः) लेवाओं [अयनों, थनों के स्थानों] से [दूध दुहती हैं]। (वा) और (यत्) जब (देवयन्तः) दिव्य गुण चाहनेवाले लोग (वाणीः) वाणियों से (अश्विना) दोनों अश्वी [व्यापक दिन-राति] को (प्र) अच्छे प्रकार (अनूषत) सराहते हैं ॥४॥
Connotation: - मनुष्य दिन-राति तत्त्व का ग्रहण करके यशस्वी, बलवान् और कार्यकुशल होवें ॥४-६॥
Footnote: ४−(यत्) यदा (आपीतासः) समन्तात् कृतपानाः (अंशवः) अंश विभाजने-कु। विभक्ताः सोमाः। तत्त्वरसाः (गावः) धेनवः (न) यथा (दुह्रे) अथ० १०।१०।३२। प्रपूर्यन्ते (ऊधभिः) आपीनैः। क्षीराधारैः (यत्) यदा (वा) समुच्चये (वाणीः) वाणीभिः (अनूषत) णू स्तवने, लङर्थे लुङ्। नुवन्ति। स्तुवन्ति (प्र) प्रकर्षेण (देवयन्तः) देवान् दिव्यगुणान् कामयमानाः पुरुषाः (अश्विना) व्यापकौ। अहोरात्रौ ॥