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यदु॑षो॒ यासि॑ भा॒नुना॒ सं सूर्ये॑ण रोचसे। आ हा॒यम॒श्विनो॒ रथो॑ व॒र्तिर्या॑ति नृ॒पाय्य॑म् ॥

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Pad Path

यत् । उष: । यासि । भानुना । सम् । सूर्येण । रोचसे ॥ आ । ह । अयम् । अश्विनो: । रथ: । वर्ति: । याति । नृऽपाय्यम् ॥१४२.३॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:142» Paryayah:0» Mantra:3


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

दिन और राति के उत्तम प्रयोग का उपदेश।

Word-Meaning: - (उषः) हे उषा ! [प्रभात वेला] (यत्) जब तू (भानुना) प्रकाश के साथ (यासि) चलती है, [तब] तू (सूर्येण) सूर्य के साथ (सम्) ठीक प्रकार से (रोचसे) रुचती है [प्रिय लगती है।] [तभी] (अश्विनोः) दोनों अश्वी [व्यापक दिन-राति] का (अयम्) यह (रथः) रथ (ह) भी (नृपाय्यम्) नरों [नेताओं] से पालने योग्य (वर्तिः) घर पर (आ याति) आता है ॥३॥
Connotation: - जैसे उषा सूर्य के साथ सदा शोभायमान होती है, वैसे ही मनुष्य ज्ञान के साथ शोभा बढ़ाकर दिन-राति को सफल करें ॥३॥
Footnote: ३−(यत्) यदा (उषः) हे प्रभातवेले (यासि) गच्छसि (भानुना) दीप्त्या सह (सम्) सम्यक् (सूर्येण) (रोचसे) रुचि (प्रिया) भवसि (आ याति) आगच्छति (ह) अपि (अयम्) दृश्यमानः (अश्विनोः) व्यापकयोः। अहोरात्रयोः (रथः) (वर्तिः) सू० १४१।१। गृहम् (नृपाय्यम्) श्रुदक्षिस्पृहि०। उ० ३।९६। पा रक्षणे-आय्य। नृभिर्नेतृभिः पातव्यं पालनीयम् ॥