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यद॒प्सु यद्वन॒स्पतौ॒ यदोष॑धीषु पुरुदंससा कृ॒तम्। तेन॑ माविष्टमश्विना ॥

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यत् । अप्ऽसु । वनस्पतौ । यत् । ओषधीषु । पुरुदंससा । कृतम् ॥ तेन । मा । अविष्टम् । अश्विना ॥१३९.५॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:139» Paryayah:0» Mantra:5


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

गुरुजनों के गुणों का उपदेश।

Word-Meaning: - (पुरुदंससा) हे बहुत कर्मोंवाले दोनों ! (यत्) जो कुछ (कृतम्) क्रियाफल (अप्सु) जल में है, (यत्) जो (वनस्पतौ) वनस्पति [वृक्षों] में है, और (यत्) जो (ओषधीषु) ओषधियों [जौ चावल आदि] में है, (अश्विना) हे दोनों अश्वी ! [चतुर माता-पिता] (तेन) उस [क्रियाफल] से (मा) मेरी (अविष्टम्) रक्षा करो ॥॥
Connotation: - गुरुजन जिज्ञासुओं को जल आदि सब पदार्थों का तत्त्वज्ञान कराके, क्रियाकुशल बनावें ॥॥
Footnote: −(यत्) (अप्सु) जलेषु (यत्) (वनस्पती) जाताविदमेकवचनम्। वनस्पतिषु वृक्षेषु (यत्) (ओषधीषु) यवव्रीह्यादिषु (पुरुदंससा) हे बहुकर्माणौ (कृतम्) क्रियाफलम् (तेन) क्रियाफलेन (मा) माम् (अविष्टम्) अवतेर्लोटि बाहुलकात् सिप्, तत इट्। रक्षतम् (अश्विना) म० १। हे चतुरमातापितरौ ॥