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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - (कण्वाः) बुद्धिमानों ने (यत्) जब (इन्द्रम्) इन्द्र [महाप्रतापी मनुष्य] को (स्तोमैः) उत्तम गुणों के व्याख्यानों से (यज्ञस्य) यज्ञ [देवपूजा, संगतिकरण और दान] का (साधनम्) सिद्ध करनेवाला (अकृत) बनाया है, [तभी उस को] (आयुधम्) मनुष्यों का पोषण करनेवाला (जामि) बन्धु (ब्रुवते) कहते हैं ॥३॥
Connotation: - बुद्धिमान् लोग प्रतापी गुणी पुरुष को प्रधान बनाकर प्रजा को पालें ॥३॥
Footnote: ३−(कण्वाः) मेधाविनः-निघ० ३।१। (इन्द्रम्) महाप्रतापिनं मनुष्यम् (यत्) यदा (अकृत) करोतेर्लुङि रूपम्। अकृषत (स्तोमैः) स्तुत्यगुणानां व्याख्यानैः (यज्ञस्य) देवपूजासंगतिकरणदानव्यवहारस्य (साधनम्) साधयितारं निष्पादकम् (जामि) वसिवपियमि०। उ० ४।१२। जमु अदने-इञ्। जामिं बन्धुम् (ब्रुवते) कथयन्ति (आयुधम्) आयुधो मनुष्यनाम-निघ० २।३। मनुष्याणां पोषकम् ॥