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इन्द्रः॒ स दाम॑ने कृ॒त ओजि॑ष्ठः॒ स मदे॑ हि॒तः। द्यु॒म्नी श्लो॒की स सो॒म्यः ॥

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इन्द्र: । स । दामने । कृत: । ओजिष्ठ: । स: । मदे । हित: ॥ द्युम्नी । श्लोकी । स: । सोम्य: ॥१३७.१३॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:137» Paryayah:0» Mantra:13


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

Word-Meaning: - (सः) वह (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला राजा] (दामने) दान करने के लिये और (सः) वह (मदे) आनन्द देने के लिये (ओजिष्ठः) महाबली और (हितः) हितकारी (कृतः) बनाया गया है, (सः) वह (द्युम्नी) अन्नवाला और (श्लोकी) कीर्तिवाला पुरुष (सोम्यः) ऐश्वर्य के योग्य है ॥१३॥
Connotation: - प्रजागण प्रतापी, गुणी पुरुष को इसलिये राजा बनावें कि वह प्रजा के उपकार के लिये दान करके प्रयत्न करे और अन्न आदि पदार्थ बढ़ाकर कीर्ति पावे ॥१३॥
Footnote: १२-१४−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अथ० २०।४७।१-३ ॥