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यदा॑ स्थू॒लेन॒ पस॑साणौ मु॒ष्का उपा॑वधीत्। विष्व॑ञ्चा व॒स्या वर्ध॑तः॒ सिक॑तास्वेव॒ गर्द॑भौ ॥

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यदा । स्थूलेन । पयसा । अणो । मुष्कौ । उप । अवधीत् ॥ विष्वञ्चा । वस्या । वर्धत: । सिकतासु । एव । गर्दभौ ॥१३६.२॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:136» Paryayah:0» Mantra:2


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

Word-Meaning: - (यदा) जब (स्थूलेन) बड़े (पससा) राज्य प्रबन्ध के साथ (अणौ) सूक्ष्म न्याय के बीच (मुष्कौ) दोनों चोरों [स्त्री और पुरुष चोरों वा राति और दिन के चोरों] को (उप अवधीत्) वह [राजा] मार डालता है। (विष्वञ्चा) सब ओर पूजनीय (वस्या) अति श्रेष्ठ दोनों [स्त्री और पुरुष], (सिकतासु) रेतवाले देशों में (गर्दभौ एव) दो श्वेत कमलों के समान, (वर्धतः) बढ़ते हैं ॥२॥
Connotation: - जब राजा सूक्ष्म विचार के साथ सब दुष्ट चोरों को मिटा देता है, तभी श्रेष्ठ गुणवान् स्त्री-पुरुष बढ़ते हैं, जैसे बालू के स्थानों में श्वेत कमल बढ़ता है ॥२॥
Footnote: २−(यदा) (स्थूलेन) महता (पससा) अथ० ४।४।६। पस बन्धे बाधे च−असुन्। पसः=राष्ट्रम्−दयानन्दभाष्ये, यजु० २३।२२। राज्यप्रबन्धेन (अणौ) सूक्ष्मे न्याये (मुष्कौ) म० १। तस्करौ (उप) व्याप्तौ (अवधीत्) हन्ति। नाशयति (विष्वञ्चा) विषु+अञ्चु गतिपूजनयोः−क्विन्। सर्वतः पूज्यौ (वस्या) वसु−ईयसुन्, ईकारलोपः। सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। विभक्तेर्डा। वसीयसौ। अतिश्रेष्ठौ स्त्रीपुरुषौ (वर्धतः) (सिकतासु) पृषिरञ्जिभ्यां कित्। उ० ३।१११। सिक सेचने−अतच्। बालुयुक्तभूमिषु (एव) सादृश्ये। इव (गर्दभौ) कॄशॄशलिकलिगर्दिभ्योऽभच्। उ० ३।१२२। गर्द शब्दे−अभच्। द्वे श्वेतकुमुदे ॥