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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - (पीवरी) पुष्टाङ्गी, (पिङ्गलिका) शोभायमान, (कुमारी) कामनायोग्य कुमारी [कन्या] (यः) प्रयत्न से (वसन्तम्) वसन्त राग को (लभेत्) प्राप्त होवे। [वैसे ही राजा] (तैलकुण्डम्) [तपते हुए] तेलकुण्ड में डाले हुए (अङ्गुष्ठम् इम) अंगूठे [अंगुली] को जैसे [वैसे] (रोदन्तम्) रोते हुए (शुदम्) ज्ञानदाता का (उद्धरेत्) उद्धार करे [ऊँचा उठावे] ॥१६॥
Connotation: - जैसे स्त्रियाँ प्रसन्न होकर वसन्त राग को गाती हैं, वैसे ही राजा प्रसन्न होकर क्लेश में पड़े हुए विद्वानों को उठावे, जैसे तपे हुए तेल में से अंगुली को उठा लेते हैं ॥१६॥
Footnote: इति कुन्तापसूक्तानि समाप्तानि ॥ १६−(यः) यसु प्रयत्ने−क्विप्, विभक्तेर्लुक्। यसा। प्रयत्नेन (कुमारी) म० १४। कमु कान्तौ−आरन्, ङीप्। कमनीया कन्या (पिङ्गलिका) म० १४। शोभमाना (वसन्तम्) तॄभूवहिवसि०। उ० ३।१२८। वस निवासे−झच्। रागविशेषम् (पीवरी) म० १२। पीवर-ङीप्। पुष्टाङ्गी (लभेत्) प्राप्नुयात् (तैलकुण्डम्) पचाद्यच्। तप्ततैलकुण्डेन युक्तम् (इम) म० १३। इव। यथा (अङ्गुष्ठम्) अङ्गु+ष्ठा गतिनिवृत्तौ−क। अम्बाम्बगोभू०। पा० ८।३।९७। इति षत्वम्। अङ्गौ हस्ते पादे वा तिष्ठतीति। अम्बाम्बेति सूत्रे, अङ्गु शब्दप्रयोगः। वृद्धाङ्गुलिम्। अङ्गुलिम् (रोदन्तम्) रोदनं कुर्वन्तम् क्लेशं प्राप्तम् (शुदम्) शुन गतौ−डु+ददातेः−क। ज्ञानदातारम् (उद्धरेत्) हृञ् हरणे ऊर्ध्वमानयेत् ॥