Go To Mantra

यद॑स्या अंहु॒भेद्याः॑ कृ॒धु स्थू॒लमु॒पात॑सत्। मु॒ष्काविद॑स्या एज॒तो गो॑श॒फे श॑कु॒लावि॑व ॥

Mantra Audio
Pad Path

यत् । अस्या: । अंहुऽभेद्या: । कृधु । स्थूलम् । उपऽअतसत् ॥ मुष्कौ । इत् । अस्या: । एजत: । गोऽशफे । शकुलौऽइव ॥१३६.१॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:136» Paryayah:0» Mantra:1


Reads times

PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

Word-Meaning: - (यत्) जब (अस्याः) इस (अंहुभेद्याः) पाप से नाश होनेवाली [प्रजा] के (कृधु) छोटे और (स्थूलम्) बड़े [पाप] को (उपातसत्) वह [राजा] नाश करता है। (अस्याः) इस [प्रजा] के (मुष्कौ इत्) दोनों ही चोर [स्त्री और पुरुष चोर अथवा राति और दिन के] चोर (गोशफे) गौ के खुर के गढ़े में (शकुलौ इव) दो मछलियों के समान, (एजतः) काँपते हैं [डरते हैं] ॥१॥
Connotation: - जब राजा न्याय से सब प्रजा के छोट़े-बड़े अपराध को मिटाता है, तब सब स्त्री-पुरुष राति और दिन में पाप से काँपते हैं, जैसे मछलियाँ थोड़े जल में घबराती हैं ॥१॥
Footnote: [पदपाठ के लिये सूचना सूक्त १२७ देखो ॥]यह मन्त्र यजुर्वेद में है−२३।२८। और महर्षिदयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका पृष्ठ ३३२ में व्याख्यात है ॥ १−(यत्) यदा (अस्याः) अग्रे वर्तमानायाः (अंहुभेद्याः) भृमृशीङ्०। उ० १।७। अम रोगे पीडने च−उप्रत्ययः, हुक् च। अंहुरः=अंहस्वान्−निरु० ६।२७। अवितॄस्तृतन्त्रिभ्य ईः। उ० ३।१८। भिदिर् विदारणे−ईप्रत्ययः। अंहुना पापेन भेदनीया विदारणीया या सा अंहुभेदी तस्याः प्रजायाः (कृधु) ह्रस्वम्−निघ० ३।२। अल्पं पापम् (स्थूलम्) महत् पापम् (उपातसत्) तसु उपक्षये उपक्षेपे च−लङ् लडर्थे। उपक्षिपति नाशयति (मुष्कौ) सृवृभूशुषिमुषिभ्यः कक्। उ० ३।४१। मुष स्तेये−कक्। तस्करौ। स्त्रीपुरुषरूपौ रात्रिदिवसभवौ चौरौ वा (इत्) एव (अस्याः) प्रजायाः (एजतः) कम्पेते। बिभीतः (गोशफे) गोखुरचिह्ने (शकुलौ) मद्गुरादयश्च। उ० १।४१। शक्लृ शक्तौ−उरच्, रस्य लः। मत्स्यौ (इव) यथा ॥