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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (त्वम्) तूने (अस्मै) इस (छिन्नपक्षाय) कटे पंखवाले, (वञ्चते) चलते हुए (कपोताय) कबूतर को (पक्वम्) पका हुआ (श्यामाकम्) श्यामा [समा अन्न], (पीलु) पीलु [फल विशेष] (च) और (वाः) जल (बहुः) बहुत बार (अकृणोः) किया है ॥१२॥
Connotation: - जैसे पंख कटे कबूतर को अन्न और जल देकर पुष्ट करते हैं, वैसे ही राजा दीन-दुखियों को अन्न आदि देकर सुखी करे ॥१२॥
Footnote: १२−(त्वम्) (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् राजन् (कपोताय) पक्षिविशेषाय (छिन्नपक्षाय) (वञ्चते) वञ्चु गतौ−शतृ। गच्छते (श्यामाकम्) क्षुद्रधान्यभेदम् (पक्वम्) (पीलु) फलविशेषम् (च) (वाः) जलम् (अस्मै) प्रसिद्धाय (अकृणोः) कृतवानसि (बहुः) द्वित्रिचतुर्भ्यः सुच्। पा० ।४।१८। इति सुच् बाहुलकात्। बहुवारम् ॥