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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
राजा के धर्म का उपदेश।
Word-Meaning: - (रेभ) हे विद्वान् ! (वच्यस्व) उपदेश कर, (वच्यस्व) उपदेश कर, (न) जैसे (शकुनः) पक्षी (पक्वे) फलवाले (वृक्षे) वृक्ष पर [चह-चहाता है]। (नष्टे) दुःख व्यापने पर (भुरिजोः) दोनों धारण-पोषण करनेवाले [स्त्री-पुरुष] की (इव) ही (जिह्वा) जीभ (चर्चरीति) चलती रहती है, (न) जैसे (क्षुरः) छुरा [केशों पर चलता है] ॥४॥
Connotation: - विद्वान् स्त्री पुरुष प्रसन्न होकर सन्तान आदि को सदा सदुपदेश करें, जैसे फलवाले वृक्ष पर पक्षी प्रसन्न होकर बोलते हैं, और सदुपदेश द्वारा क्लेशों को इस प्रकार काटे, जैसे नापित केशों को छुरा से काट डालता है ॥४॥
Footnote: ४−(वच्यस्व) ब्रवीतेर्यक्। ब्रूहि। उपदिश (रेभ) स्तोतृनाम-निघ० ३।१६। हे विद्वन् (वच्यस्व) (वृक्षे) (न) यथा (पक्वे) फलयुक्ते (शकुनः) अथ० ६।२७।२। शक्लृ शक्तौ-उन। शक्तः। पक्षी (नष्टे) नशत्, व्याप्तिकर्मा-निघ० २।१८। व्याप्ते दुःखे (जिह्वा) वाणी (चर्चरीति) भृशं चरति (क्षुरः) क्षुर विलेखने-क। नापितास्त्रम् (न) यथा (भुरिजोः) भृञ उच्च। उ० २।७२। डुभृञ् धारणपोषणयोः-इजि कित्, उकारान्तादेशः। धारकपोषकयोः स्त्रीपुरुषयोः (इव) एव ॥