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उप॑ नो न रमसि॒ सूक्ते॑न॒ वच॑सा व॒यं भ॒द्रेण॒ वच॑सा व॒यम्। वना॑दधिध्व॒नो गि॒रो न रि॑ष्येम क॒दा च॒न ॥

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उप । न: । रमसि । सूक्तेन । वचसा । वयम् । भद्रेण । वचसा । वयम् ॥ वनात् । अधिध्वन: । गिर: । न । रिष्येम । कदा । चन ॥१२७.१४॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:127» Paryayah:0» Mantra:14


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

राजा के धर्म का उपदेश।

Word-Meaning: - [हे राजन् !] (नः) हमको (न) अब (उप) आदर से (रमसि) तू आनन्द देता है, (सूक्तेन) वेदोक्त (वचसा) वचन के साथ (वयम्) हम, (भद्रेण) कल्याणकारी (वचसा) वचन के साथ (वयम्) हम (वनात्) क्लेश से अलग होकर (अधिध्वनः) ऊँची ध्वनिवाली (गिरः) वाणियों को (कदा चन) कभी भी (न) न (रिष्येम) नष्ट करें ॥१४॥
Connotation: - राजा और प्रजा परस्पर उपकार करके दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ संसार में सुख बढ़ावें ॥१४॥
Footnote: १४−(उप) पूजायाम् (नः) अस्मान् (न) सम्प्रति (रमसि) रमयसि। आनन्दयसि (सूक्तेन) वेदविहितेन (वचसा) वचनेन (वयम्) प्रजाजनाः (भद्रेण) कल्याणकरेण (वचसा) (वयम्) (वनात्) वन उपतापे-अच्। क्लेशात् पृथग्भूय (अधिध्वनः) ध्वन शब्दे-क्विप्। उच्चध्वनिः युक्ताः (गिरः) वाणीः (न) निषेधे (रिष्येम) नाशयेम (कदा) कस्मिन् काले (चन) अपि ॥