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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
राजा के धर्म का उपदेश।
Word-Meaning: - (गावः) हे गौओ ! तुम (इह) यहाँ पर [इस घर में], (अश्वाः) हे घोड़ो ! तुम (इह) यहाँ पर (पुरुषाः) हे पुरुषो ! तुम (इह) यहाँ पर (प्रजायध्वम्) बढ़ो, (इहो) यहाँ पर (सहस्रदिक्षणः) सहस्रों की दक्षिणा देनेवाला (पूषा) पोषक [गृहपति] (अपि) भी (नि षीदति) बैठता है ॥१२॥
Connotation: - उत्तम राजा के प्रबन्ध से गृहस्थ लोग गौओं, घोड़ों और मनुष्यों से वृद्धि करके परस्पर उपकार करें ॥१२॥
Footnote: यह मन्त्र महर्षिदयानन्दकृत संस्कारविधि विवाहप्रकरण में उद्धृत है ॥ १२−(इह) अस्मिन् गृहे (गावः) हे धेनवः (प्रजायध्वम्) प्रवर्धध्वम् (इह) (अश्वाः) हे तुरङ्गाः (इह) (पूरुषाः) हे मनुष्याः (इहो) इह-उ। अत्रैव (सहस्रदक्षिणः) बहुदानस्वभावः (अपि) (पूषा) पोषको गृहपतिः (नि षीदति) उपविशति ॥