गृहस्थ के कर्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले मनुष्य] (अयम्) इस (वृषाकपिः) वृषाकपि [बलवान् चेष्टा करानेवाले जीवात्मा] ने (परस्वन्तम्) पालनेवाले व्यवहार को (हतम्) नाश किया हुआ (विदत्) पाया है, (आत्) तभी (नवम्) नवीन (चरुम्) स्थान [अर्थात् देश निकाला] [अथवा] (असिम्) तलवार, (सूनाम्) बध स्थान, और (एधस्य) इन्धन का (आचितम्) भरा हुआ (अनः) छकड़ा [पाया है], (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला मनुष्य] (विश्वस्मात्) सब [प्राणी मात्र] से (उत्तरः) उत्तम है ॥१८॥
Connotation: - जो पापी आत्मा उपकारी व्यवस्था को तोड़े, उसको दण्ड रीति से ऐसा कष्ट भोगना चाहिये, जैसे कोई अपराधी देश से निकाला जावे, अथवा तलवार आदि शस्त्र से मारकर लकड़ी से भस्म किया जावे ॥१८॥