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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
राजा के धर्म का उपदेश।
Word-Meaning: - (शुभः पती) हे शुभ व्यवहार के पालन करने हारे (अश्विना) कर्मों में व्यापक [सभापति और सेनापति] (सचा) मिले हुए (विपिपाना) विविध प्रकार रक्षक (युवम्) तुम दोनों ने (नमुचौ) न छोड़ने योग्य [सदा रखने योग्य] (आसुरे) बुद्धिमान् पुरुष के व्यवहार में (कर्मसु) कर्मों के बीच वर्तमान, (सुरामम्) भले प्रकार आनन्द देनेवाले (इन्द्रम्) इन्द्र [परम ऐश्वर्यवाले धनी पुरुष] की (आवतम्) रक्षा की है ॥४॥
Connotation: - प्रजा और सेना के अधिकारी मिलकर व्यवहारकुशल धनी पुरुषों की रक्षा करके खेती आदि व्यापारों से प्रजा को सुख पहुँचावें ॥४॥
Footnote: मन्त्र ४ यजुर्वेद में भी हैं-१०।३३।३४ तथा २०।७६, ७७ ॥ ४−(युवम्) युवाम् (सुरामम्) सुष्ठु रमयितारं आनन्दयितारम् (अश्विना) कर्मसु व्यापकौ सभासेनेशौ (नमुचौ) अ० २०।२१।७। अमोचनीये। सदा रक्षणीये (आसुरे) असुर-अण्। असुः प्रज्ञा-निघ० ३।९, रो मत्वर्थे। असुरस्य मेधाविनः पुरुषस्य व्यवहारे (सचा) समवेतौ (विपिपाना) पा रक्षणे-कानच्। विविधं रक्षमाणौ (शुभः) कल्याणकरस्य व्यवहारस्य (पती) पालकौ (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं धनिकम् (कर्मसु) (आवतम्) युवां रक्षितवन्तौ ॥