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आ॑दि॒त्यैरिन्द्रः॒ सग॑णो म॒रुद्भि॑र॒स्माकं॑ भूत्ववि॒ता त॒नूना॑म्। ह॒त्वाय॑ दे॒वा असु॑रा॒न्यदाय॑न्दे॒वा दे॑व॒त्वम॑भि॒रक्ष॑माणाः ॥

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आदित्यै: । इन्द्र: । सऽगण: । मरुत्ऽभि: । अस्माकम् । भूतु । अविता । तनूनाम् ॥ हत्वाय । देवा: । असुरान् । यत् । आयन् । देवा: । देवऽत्वम् । अभिऽरक्षमाणा: ॥१२४.५॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:124» Paryayah:0» Mantra:5


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।

Word-Meaning: - (सगणः) गणों [सुभट वीरों] के साथ वर्तमान (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला सभापति] (आदित्यैः) अखण्ड व्रतधारी (मरुद्भिः) शूर मनुष्यों के साथ (अस्माकम्) हमारे (तनूनाम्) शरीरों का (अविता) रक्षक (भूतु) होवें। (यत्) क्योंकि (असुरान्) असुरों [दुराचारियों] को (हत्वाय) मारकर (देवाः) विजय चाहनेवाले, (अभिरक्षमाणाः) सब ओर से रक्षा करते हुए (देवाः) विद्वानों ने (देवत्वम्) देवतापन [उत्तम पद] (आयन्) पाया है ॥॥
Connotation: - जो मनुष्य शूर वीर विद्वानों के साथ प्रजा की रक्षा कर सके, वही अपने उत्तम कर्मों के कारण उत्तम पद सभापतित्व आदि के योग्य होवे ॥॥
Footnote: ४-६−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अथ० ६३।१-३ ॥